अपने कर्मो से ऊंचाईयों को छू लें
जो करता है सभी से प्यार
उसे प्रभु जी भी सीने से लगाता है
माता पिता के चरणों में जो
निशदिन शीश झुकाता है
इक दिन वही ऊंचाइयों को छू पाता है
मेरी इस कविता को बार बार पढ़ना
अपने कर्मो से ऊंचाईयों को छू लें।
हूं आज मैं,कल का कल ही जानें
कल्पनाएं हमारी रचती है किरदार अनोखें
क्यों घबरा जाते है हम,सच्चाई के राहों में
जीवन है जीये और जीते इसें
भारत मां के सच्चें सपूत कहलाना है तो
अपने कर्मो से ऊंचाईयों को छू लें।
बुलंद हौंसले लेकर जो इंसान
मंजिल की ओर बढ़ते चले जाते है
ऐसे ही कर्मवीर सज्जनों
अपनी अपनी मंजिल पा जाते है
आज का दौर कुछ अलग तरह का है
अपने कर्मो से ऊंचाईयों को छू लें।
आगे बढ़ना ही जीवन है
साहस ही तो है तेरे जीवन का धन
नए इरादें गढ़ता चल
आगे आगे बढ़ता चल
आओ नया कोई दीप जलाएं
अपने कर्मो से ऊंचाईयों को छू लें।
नूतन लाल साहू
वानी
24-Jun-2023 07:26 AM
Nice
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shweta soni
22-Jun-2023 10:33 AM
👌👌
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Haaya meer
27-May-2023 07:10 PM
Nice
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